कम्युनिस्ट आतंकवादियों की रणनीति और हथकण्डे

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कम्युनिस्ट आतंकवादियों की रणनीति और हथकण्डे
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‘नक्सलवाद’, ‘LWE’ या ‘माओवाद’ नहीं; बल्कि कम्युनिस्ट आतंकवाद कहिए!

पिछले महीने एक काम के सिलसिले में मेरा मनमाड जाना हुआ। वापसी की यात्रा में एक सज्जन से देशदुनिया की मेरी चर्चा न जाने कैसे माओवाद तक पहुँच गई। वही माओवादजिसे वामपंथी उग्रवाद बताकर भारत सरकार ने 2009 में देश की आन्तरिक सुरक्षा के लिए सबसे बडा खतरा बता दिया था। लेकिन इस बारे में उन सज्जन के विचार किंचित् भिन्न थे। उन्होंने जिस तरह मुझे कथित नक्सलवाद का इतिहास समझाते हुए बताया कि कैसे शोषितों और वंचितो की दबीकुचली आवाज ने देश की आंतरिक सुरक्षा के लिए सबसे बड़े खतरे का रूप धारण कियातो उसे सुनकर मुझे यह समझ आ गया कि वे भाईसाहब भी भ्रान्त नैरेटिव्ज़ में उलझे हुए हैं।

उनका कहना था कि हमारी सरकारें उन लोगों की बात सुननेसमझने की बजाय उनके खिलाफ़ सेना भेज रही हैं। आगे उन्होंने मुझसे पूछने के लहजे में कहा, “आप ही बताओ कि सेना दुश्मनों को मारने के लिए होती हैया अपने हक की लड़ाई कर रही जनता को मारने के लिएआखिर कौनसा देश अपने ही मासूम नागरिकों को मारने के लिए सेना भेजता है?”

मशीनगन से गोली की तरह वे एक के बाद एक प्रश्न दागते जा रहे थे। “क्या देश में अपने हक के लिए आवाज उठाना देशद्रोह है?” लेकिन इस बीच मुझसे रहा नहीं गया और मैंने उन्हें टोकते हुए कहा, “भाईसाहबआज के Information Pool में सचझूठ में अन्तर करना बड़ा कठिन है और संभवतः यही कारण है कि आप जैसे सुलझे हुए लोग भी सचझूठ में अन्तर नहीं कर पा रहे हैं।

अब प्रश्न पूछने की बारी मेरी थी। मैंने उनसे प्रश्न पूछना शुरु किया, “भैयायदि आपकी जानकारी सही हैतो यह बताइये कि ये भोलेभाले लोग खुद को माओवादी क्यों कहते हैंआप जिन्हें नक्सली कह रहे हैंवो खुद के संगठन को Communist Party of India क्यों कहते हैंउनके पास आधुनिक हथियार कहाँ से आएइन अनपढ़ मासूम लोगों ने अत्याधुनिक खुफिया तंत्र कैसे विकसित कर लिएचीन के कम्युनिस्ट तानाशाह माओ से भला इनका क्या लेना देना?”

और फिर मैंने उनका ही प्रश्न उलटकर उनपर दागा कि आप ही बताइये कि आखिर ऐसे कौनसे कारण हैं कि भारत सरकार को इन कथित मासूमों को देश की आंतरिक सुरक्षा के लिए सबसे बड़ा खतरा मानना और बताना पड़ाउनके पास मेरे इन प्रश्नों के उत्तर नहीं थे। उत्तर क्या उनके मन में कभी ऐसे सवाल ही पैदा नहीं हुए। होते भी कैसे?

ब्रिटिशकाल से ही हमारी शिक्षा प्रणाली इस तरह ढाली गई है कि हम केवल रटकर परीक्षा निकाल लें। विचारमनन करनाप्रश्न करना आदि आदतों को हमने कबका छोड़ ही दिया है। खैरउन सज्जन के चेहरे पर दिख रहे भाव मुझे बता रहे थे कि मेरे प्रश्नों ने उनके मन में असमंजस की हिलोरें खडी कर दी थीं। क्योंकि लगभग साल भर पहले तकजब तक मैंने CPI (Maoist) के कुछ महत्वपूर्ण दस्तावेज़ नहीं पढ़े थेतब तक कथित नक्सलवाद को लेकर मेरे भी विचार लगभग ऐसे ही थे।

इसलिए उनके मन में उठ रही हिलोरों को पढ़कर मैंने उनसे कहना शुरु किया कि भाईसाहबऐसा है कि ये नक्सलवादनक्सलीभटके हुए लोगजैसा कुछ है ही नहीं। यह एक विशुद्ध आतंकवाद है। कम्युनिस्ट आतंकवाद। और जिन्हें आप हक की लड़ाई लड़ रहे भोलेभाले मासूम बता रहे हैंवे चालाक आतंकवादी हैं। ये सभी पूरी दुनिया को कम्युनिस्ट बनाने की सनक के साथ काम कर रहे हैं। यह एक ऐसी सनक हैजो पूरी दुनिया में अबतक 10 करोड़ से भी ज्यादा लोगों की जान ले चुकी हैजो पूरी दुनिया में कोविड-19 से मरने वालों से लगभग 10 गुना ज्यादा है।

नक्सली जैसे झूठे नाम लेकर आतंक फैला रहेये कम्युनिस्ट आतंकवादी भी बिल्कुल जेहादी आतंकवादियों की तरह ही हैंजो पूरी दुनिया को मुसलमान बनाने की सनक पर सवार हैं। औरतोऔर कई जगहों पर इन दोनों का गठजोड़ भी काम कर रहा है। पर इससे मुझे उन सज्जन की परेशानियाँ कम होने की बजाए बढ़ती दिखीं। तो मैंने उन्हें किसी भी तरह का तर्क देने से पहले माओकम्युनिज़्म जैसे शब्दों को समझाना शुरु किया। लेकिन तब तक गाड़ी मुझे गन्तव्य तक पहुँचा चुकी थी। हमारी बात अधूरी ही रह गई। उनसे मोबाइल नम्बर लेना तो दूरउनका नाम भी मैं नहीं पूछ सका था। तो आगे उनसे सम्पर्क की संभावना लगभग नगण्य ही थी।

इसी बीच मेरे मन में यह विचार फिर से उठा कि मुझे इन कम्युनिस्ट आतंकवादियों की हकीकत लोगों तक पहुँचाने की कोशिश करनी चाहिए। पहले भी कई बार दोस्तों को इस बारे में बताते समय ऐसा विचार मन में कौंधा थालेकिन इसबार यह यह एक निश्चय बन गया। ‘कम्युनिस्ट आतंकवादियों की रणनीति और हथकण्डे‘ नाम की यह आलेख शृंखला इसी निश्चय का परिणाम है।

इस आलेख शृंखला में हम कम्युनिस्ट आतंकवाद के वैचारिक आधार से शुरु करते हुए पहले मार्क्सलेनिनग्राम्शी और माओ के विचारों और कम्युनिज्म को एक सनक बनाने की उनकी रणनीतियों की चर्चा करेंगे।

फिर हम भारत के विरुद्ध भारत के भीतर से ही माओवादी युद्ध चला रही CPI के एक अतिमहत्वपूर्ण दस्तावेज़ Strategy and Tactics of The Indian Revolution (भारत में कम्युनिस्ट क्रान्ति की रणनीति और हथकण्डेपर क्रमशः विचार करेंगे। इस शृंखला में हमारा अगला लेख कम्युनिस्ट आतंकवाद ‘उर्फ़‘ माओवाद के वैचारिक आधार पर केन्द्रित होगा।

ऐश्वर्य पुरोहित

शोधार्थी

स्तंभकार