क्या तेलंगाना सरकार नहीं चाहती कि,नक्सल मुव्हमेंट खत्म हो?

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नागपूर(Nagpur): सारा देश एक और नक्सलियोंपे तथा उनके कारनामोपे काबू लानेमे जुटा युवा है, वही तेलंगाना सरकार नक्सलियोंके काम आने वाली योजनाओको लागू करनेमे अगुवाही करते दिख रहा है. जिसके परिणाम स्वरूप तेलंगाना में नक्सलियोंके खिलाफ अनौपचारिक युद्धविराम की स्थिती बनी हुई है. इस परिस्थिती का फायदा उठाकर घायल माओवादियों ने सुरक्षित ठिकाना बना दिया है, तथा उन्होंने फिर से हथियार जुटाकर तैयारी शुरू करनेकी भी खबरे सुर्खियोमे है.
भारत में माओवाद उन्मूलन की आक्रामक अभियान को मार्च 2026 तक समाप्त करने के लक्ष्य के बीच, सुरक्षा एजेंसियों ने तेलंगाना में माओवादी और सुरक्षाबलों के बीच चल रही अनौपचारिक सुलह (ceasefire) को लेकर गंभीर चिंता जताई है।
मई में पहली बार सुलह की बातें सामने आई थीं, और हाल ही में माओवादी नेताओं ने तेलंगाना में छह महीने की इस युद्धविराम अवधि बढ़ाए जाने की पुष्टि की है.
यह समझौता अब सिर्फ लड़ाई बंद करने का तरीक़ा नहीं रहा है, क्योकी माओवादी इसे रणनीतिक “संरेखण स्थल” यानी सुरक्षित ज़ोन के रूप में उपयोग कर रहे हैं।

2. माओवादी पुनर्गठन
इस बिच खबरे है कि, घायल और कमजोर पड़े People’s Liberation Guerrilla Army (PLGA) के सदस्य तेलंगाना में लौटकर अपना पुनर्गठन कर रहे हैं।
वे व्हा चिकित्सा सुविधाए, सहायता पा रहे हैं, नए समर्थकों की भर्ती कर रहे हैं, और लॉजिस्टिक्स (आपूर्ति व्यवस्था) को फिर से खड़ा कर रहे हैं।
खुफिया रिपोर्टों में आरोप है कि वे शांति के इस आवरण के भीतर हथियार खरीदने के नेटवर्क को भी फिर शुरू करने की योजना बना रहे हैं।

3. माओवादी नेतृत्व का स्थानांतरण
सुरक्षा सूत्रों के अनुसार, PLGA के लगभग 50 सदस्य अब तेलंगाना में सक्रिय हैं, जिनका नेतृत्व वरिष्ठ माओवादी कमांडरों देवजी और हिदमा कर रहे हैं।
ये कमांडर पहले छत्तीसगढ़ में थे, लेकिन मुठभेड़ों का डर देखकर तेलंगाना चले आए हैं।
माओवादी के तेलंगाना स्टेट कमेटी के प्रवक्ता “जगन” ने युद्धविराम पर बयान दिया है, जिसे कुछ अधिकारी “कतारबद्ध आमंत्रण” के रूप में देख रहे हैं, ताकि और काडर्स सुरक्षित क्षेत्र में आ सकें।

4. खतरा और रणनीतिक महत्व
खुफिया अफसरों का कहना है कि यह “अनौपचारिक विराम” वास्तव में माओवादी संगठन को जीवनरेखा दे रहा है। PLGA की लड़ने की क्षमता पिछले वर्षों में काफी घट गई थी. कम लोग, कम हथियार, मनोबल गिरा हुआ, लेकिन तेलंगाना की यह सुलह उन्हें फिर से जीवित और संगठित होने का मौका दे रही है।
सुरक्षा एजेंसियों को डर है कि छह महीने के इस “शांत विश्राम” के बाद माओवादी बेहतर आल्फ़ाज़ (Ambush) रणनीतियों के साथ लौट सकते हैं।

5. राष्ट्रीय मिशन पर असर
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हाल ही में छत्तीसगढ़ में कहा था कि माओवादीवाद “बहुत जल्द” खत्म हो जाएगा। लेकिन तेलंगाना में यह अनौपचारिक युद्धविराम “सबसे बड़ी खामी” बनता दिख रहा है, क्योंकि यह भारत की माओवादी समस्या को 2026 के लक्ष्य तक खत्म करने की रणनीति को चुनौती दे सकता है। इस समय यह सवाल भी उठ रहा है कि, क्या तेलंगाना सरकार नहीं चाहती कि, नक्सल मुव्हमेंट खत्म हो?