

बिहार (Bihar) बिहार की सियासत दशकों से संपूर्ण क्रांति के अगुवा लोकनायक जयप्रकाश नारायण और उनके शिष्यों के इर्द-गिर्द घूमती रही है. सूबे के सत्ता संसार का 1990 से लेकर अब तक जो दो कद्दावर चेहरे केंद्रबिंदु रहे हैं, वह राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) के प्रमुख लालू प्रसाद यादव और जनता दल (यूनाइटेड) अध्यक्ष नीतीश कुमार भी जेपी के ही शिष्य हैं. लालू यादव पहले ही अपनी सियासी विरासत अपने बेटे तेजस्वी यादव को सौंप चुके हैं. नीतीश कुमार की उम्र भी 74 साल होने को है. नीतीश कुमार ने 2020 के बिहार चुनाव में अंतिम चरण का प्रचार थमने से ठीक पहले यह कहा भी था, “ये मेरा आखिरी चुनाव है.” यानी सीएम नीतीश कुमार भी एक्टिव पॉलिटिक्स से संन्यास के संकेत दे चुके हैं.
ऐसे में बात अब बिहार की राजनीति के दो फ्रंट को लेकर हो रही है. पहला ये कि क्या सूबे की सियासत के विशाल वट-वृक्ष रहे जेपी के शिष्यों से आगे आगे बढ़ रही है और दूसरा ये कि जेपी के शिष्यों के बाद कौन? लालू यादव और नीतीश कुमार बिहार की राजनीति में जेपी के शिष्यों की अंतिम पौध हैं. लालू यादव चारा घोटाला केस में दोषी ठहराए जाने, सजा सुनाए जाने के बाद चुनावी राजनीति से पहले ही दूर हो चुके हैं. नीतीश कुमार की अगुवाई वाली सरकार में लंबे समय तक डिप्टी रहे बीजेपी के सुशील मोदी अब रहे नहीं. ऐसे में सीएम नीतीश कुमार ही जेपी की नर्सरी से सियासत में आए ऐसे अंतिम नेता बचे हैं जो सत्ता की ड्राइविंग सीट पर है. ऐसे में कहा जा रहा है कि बिहार की राजनीति अब जेपी के शिष्यों से आगे बढ़ चली है.
जेपी के शिष्यों से आगे की सियासत में विकल्प की होड़ भी छिड़ चुकी है. विकल्प बनने की इस होड़ में कई यूथ फेस हैं. यूथ फेस की इस जंग में लालू यादव के बेटे तेजस्वी यादव से लेकर रामविलास पासवान के पुत्र चिराग पासवान, विकासशील इंसान पार्टी (वीआईपी) के अध्यक्ष मुकेश सहनी जैसे नाम शामिल हैं. इस त्रिकोणीय लड़ाई में अब चुनाव रणनीतिकार से राजनेता बने प्रशांत किशोर उर्फ पीके की भी एंट्री हो गई है. पीके जन सुराज पार्टी के नाम से दल बनाकर चुनाव मैदान में आ गए हैं और यूथ फेस की ये जंग अब चतुष्कोणीय हो गई है. इन चारो चेहरों की एक खास बात है कि इनकी सियासी लीक कहीं न कहीं जेपी के विचारों के आसपास ही है. किसकी लीक कैसे जेपी और उनके विचारों के करीब है?